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स हि रत्ना॑नि दा॒शुषे॑ सु॒वाति॑ सवि॒ता भगः॑। तं भा॒गं चि॒त्रमी॑महे ॥३॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

sa hi ratnāni dāśuṣe suvāti savitā bhagaḥ | tam bhāgaṁ citram īmahe ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

सः। हि। रत्ना॑नि। दा॒शुषे॑। सु॒वाति॑। स॒वि॒ता। भगः॑। तम्। भा॒गम्। चि॒त्रम्। ई॒म॒हे ॥३॥

ऋग्वेद » मण्डल:5» सूक्त:82» मन्त्र:3 | अष्टक:4» अध्याय:4» वर्ग:25» मन्त्र:3 | मण्डल:5» अनुवाक:6» मन्त्र:3


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - जो (सविता) उत्पन्न करनेवाला (भगः) ऐश्वर्य्यवान् परमात्मा (दाशुषे) दाताजन के लिये (रत्नानि) धनों को (सुवाति) उत्पन्न करता है (तम्) उस (भागम्) ऐश्वर्य्यसम्बन्धी (चित्रम्) अद्भुत को (ईमहे) प्राप्त होवें वा जानें और (सः, हि) वही उदार दाता है ॥३॥
भावार्थभाषाः - जो मनुष्य सम्पूर्ण रत्नों के देनेवाले परमात्मा की सेवा करते हैं, वे अद्भुत ऐश्वर्य्य को प्राप्त होते हैं ॥३॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

अन्वय:

यः सविता भगो दाशुषे रत्नानि सुवाति तं भागं चित्रमीमहे स हि दातोदारोऽस्ति ॥३॥

पदार्थान्वयभाषाः - (सः) (हि) (रत्नानि) धनानि (दाशुषे) दात्रे (सुवाति) जनयति (सविता) प्रसवकर्त्ता (भगः) ऐश्वर्य्यवान् (तम्) (भागम्) भगानामिमम् (चित्रम्) अद्भुतम् (ईमहे) प्राप्नुयाम जानीम वा ॥३॥
भावार्थभाषाः - ये मनुष्याः सर्वरत्नप्रदं परमात्मानं सेवन्ते तेऽद्भुतमैश्वर्य्यमाप्नुवन्ति ॥३॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जी माणसे सर्व रत्ने देणाऱ्या परमेश्वराची सेवा करतात त्यांना अद्भुत ऐश्वर्य प्राप्त होते. ॥ ३ ॥